एल्यूमिनियम एनोडाइजिंग के सीक्रेट Aluminium Anodizing ke Secrets ( Secrets of Aluminium Anodizing)

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इस आर्टिकल में हम एनोडाइजिंग के सीक्रेट Anodizing ke Secrets के बारे में जानेंगे। इलेक्ट्रोप्लेटिंग द्वारा वस्तुओं की सतह पर उसी धातु या किसी दूसरे मेटल की बहुत पतली लेयर जमाई जाती है। इस प्रकार जमाई जाने वाली लेयर्स, सतहों या परतों की मोटाई और रासायनिक गुणों में आमतौर पर अधिक अन्तर नहीं होता और जो थोड़ा बहुत अन्तर होता भी है वह उपयुक्त वर्ग का बाथ प्रयोग कर प्राप्त कर लिया जाता है। 

एल्यूमिनियम एनोडाइजिंग के सीक्रेट Aluminium Anodizing ke Secrets  ( Secrets of Aluminium Anodizing)

Aluminium Anodizing ke Secrets एल्यूमिनियम एनोडाइजिंग के सीक्रेट ( Secrets of Aluminium Anodizing)

परन्तु एनोडाइजिंग में ऐसा नहीं है। भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर एनोडाइजिंग प्रक्रिया द्वारा जमाई जाने वाली ऑक्साइड की परत में जमीन आसमान का-अन्तर होता है। यह अन्तर न केवल परत की मोटाई के रूप में या बहुत पतली से बहुत मोटी तक परत का होता है बल्कि उसकी सघनता में भी बहुत अधिक प्रकार का होता है। कुछ वस्तुओं पर ऑक्साइड के इतने विरल या दूर-दूर कण जभाए जाते हैं कि वस्तु की सतह पर बारीक-बारीक छेद जैसे नजर आते हैं तो कुछ वस्तुओं पर इतने सघन कण की सतह एकदम एकसार (smooth) नजर आती है। 

कुछ वस्तुओं पर एकदम मुलायम सतह जमाई जाती है तो कुछ पर इलेक्ट्रोप्लेटिंग के समान कठोर परत। यही नहीं एनोडाइजिंग करते समय वस्तुओं को विविध रंग छटाएं (shades) भी प्रदान किए जा सकते हैं। इस प्रकार के सभी प्रभावों को पैदा करने में अनेक कारक (reasons) कार्य करते हैं। 

नीचे इनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है जिससे आप मन पसन्द और ग्राहक व वस्तु की मांग के अनुरूप सही व सटीक एनोडाइजिंग करने के लिए उचित बाथ व परिस्थितियों का निर्धारण आसानी से कर सकें।

बाथ का चुनाव (Selection of Bath)

इलेक्ट्रोप्लेटिंग में विविध धातुओं की प्लेटिंग करने के लिए सामान्यतय तेजाबों पर आधारित, साइनायड मिश्रणों से बने या एल्काइली बाथ्स का प्रयोग किया जाता है और बाथ का चुनाव प्लेटिंग की जाने वाली वस्तु की धातु की प्रकृति के बनुरूप ही किया जाता है परन्तु एनोडाइजिंग में ऐसा नहीं है।

शुद्ध एल्यूमिनियम की ढली हुई, एल्यूमिनियम की चहर की बनी हुई तथा एल्यूमिनियम मिश्रित धातुओं की बनी हुई वस्तुओं पर एनोडाइजिंग केवल तेजाबों से बने घोलों (Acid Baths) बारा ही की जाती है। आमतौर पर तीन प्रकार के तेजाबों-सल्फ्यूरिक एसिड, कोमिक एसिड अथवा आजैलिक एसिड-का प्रयोग बाथ बनाने के लिए किया जाता है। 

इनमें से किसी भी एक प्रकार के बाथ का प्रयोग किसी भी प्रकार की एल्यूमिनियम की वस्तु पर किया जा सकता है अत: बाथ के चुनाव में वस्तु की धातु या सतह का कोई महत्व नहीं होता, परन्तु ये तीनों ही बाथ वस्तुओं पर अलग-अलग रंग की आभायुक्त (shaded) कोटिंग बनाते हैं अतः बाथ का चुनाव करते समय महत्व इस बात का होता है कि हमें किस रंगछटा की एनोडाइजिंग करनी है ।

1*  गंधक के तेजाब अर्थात् सल्फ्यूरिक एसिड (Sulphuric Acid) 

गंधक के तेजाब अर्थात् सल्फ्यूरिक एसिड (Sulphuric Acid) से बना हुआ बाथ एल्यूमिनियम की बनी हुई वस्तुओं की सतह पर पारदर्शी कोटिंग (Transparent Coating) बनाता है। कोटिंग या ऑक्साइड की परत का अपना कोई रंग नहीं होता बल्कि वस्तु भली प्रकार पॉलिश की गई वस्तु के समान चमकीली नजर आती है। 

सबसे अधिक प्रयोग इसी बाथ का किया जाता है क्योंकि इस बाथ में एनोडाइज की गई वस्तुएं अपने मूल रंग-रूप में ही बनी रहती हैं। एल्यूमिनियम की ढली हुई चमकीली मूर्तियों-जिन्हें व्हाइट मैटल की मूर्तियां कहा जाता है और पतली चद्दर के बने हुए डिजाइनदार भड़कीले बर्तनों पर प्रायः सल्फ्यूरिक एसिड बाथ द्वारा ही एनोडाइजिंग की जाती है। इस बाथ का प्रयोग करते समय वस्तुओं को बाथ में डुबोने से पहले अधिक से अधिक चमका लेना आवश्यक है क्योंकि यह पारदर्शी सतह बनाता है।

2*  ऑक्जेलिक एसिड (Oxalic Acid) 

ऑक्जेलिक एसिड (Oxalic Acid) द्वारा तैयार किए गए बाथ में वस्तुओं की एनोडाइजिंग करने पर उनकी सतह पर उसी रंग की परत (self coloured film) जमती है। इस प्रकार वस्तु के रंग में तो कोई परिवर्तन नहीं होता परन्तु यह परत पारदर्शी भी नहीं होती। एनोडाइजिंग करते समय बाथ के तापमान और करेण्ट डेन्सिटी में परिवर्तन करके सतह के रंग को पीताभ (light yellowish) और नीली आभायुक्त भी बनाया जा हल्का सकता है।

3*  क्रोमिक एसिड (Chromic Acid) 

क्रोमिक एसिड (Chromic Acid) के बाथ में एनोडाइजिंग करने पर वस्तुओं के ऊपर दूधिया सफेद (milk-white) रंग की परत जमती है। करेण्ट, ताप व समय की भिन्नता करके इस दूधिया सफेद रंग की परत को भूरा या गहरा भूरा भी बनाया जा सकता है।

बाथ की तीव्रता का प्रभाव (Strength of Bath) तीनों 

प्रकार के तेजाबों से बने हुए बाथ अलग-अलग रंग छटा (shades) की प्लेटिंग सतह तो प्रदान करते ही हैं बाथ में रसायनों की मात्रा घटा-बढ़ा कर आप एनोडाइजिंग की परत की मोटाई व सघनता को भी नियन्त्रित कर सकते हैं। 

किसी भी एसिड द्वारा तैयार बाथ का प्रयोग किया जाए, बाथ जितना अधिक सघन या तीव (strong) होगा उसके द्वारा उतनी ही अधिक मोटी एनोडाइज की सतह जमेगी, परन्तु यह सतह होगी बहुत मुलायम और छिद्रपूर्ण । मुलायम व छोटे-छोटे छेदों से युक्त सतह (perforated surface) प्राप्त करने के लिए तीव्र शक्ति के घोलों का प्रयोग कीजिए और मजबूत सतह प्राप्त करने के लिए हल्के (weak) घोलों का। यह एक सामान्य नियम है।

विद्युतधारा की प्रकृति (Type of Current)

इलेक्ट्रोप्लेटिंग तो केवल कम वोल्टेज के डायरेक्ट करेण्ट (D.C.) द्वारा ही की जा सकती है परन्तु एनोडाइजिंग में आप ए० सी०, डी० सी० अथवा सुपर इम्पोज्ड किसी भी प्रकार के करेण्ट का प्रयोग कर सकते हैं। आल्टरनेटिव करेण्ट (A. C.) का प्रयोग करने पर एनोडाइजिंग की मुलायम सतह बनती है और डायरेक्ट करेण्ट (D. C.) का प्रयोग करने पर मध्यम मजबूती की सामान्य सख्त सतह।

बहुत अधिक सख्त, मजबूत और घर्षण अवरोधी सतह प्राप्त करने के लिए सुपर इमोज्ड विद्य त प्रवाह (super imposed current) का प्रयोग किया जाता है। सामान्यतय सजावटी और साधारण एनोडाइजिंग के लिए डी० सी० विद्युत सर्किट-वही करेण्ट व्यवस्था जो इलेक्ट्राप्लेटिंग में काम आती है उसका प्रयोग किया जाता है। 

उद्योगों में काम आने वाले उपकरणों तथा मशीनों के हिस्से पुओं पर एनोडाइजिंग करते समय सुपर इम्पोज्ड करेण्ट का प्रयोग करना अधिक अच्छा रहता है क्योंकि इन पर अत्यधिक कठोर और घर्षणअवरोधी सतह : माई जाती है।

करेण्ट डेन्सिटी व तापमान (Current Density and Temperature)

इनोडाइजिंग की प्रक्रिया में लगभग सभी प्रकार के घोलों या बाथ्स का प्रयोग विभिन्न तापमानों पर, प्रतिवर्ग मीटर विद्युत प्रवाह के कम या अधिक घनत्व (different current densities) पर करना संभव है । बाथ में विद्युत प्रवाह का घनत्व जैसे-जैसे बढ़ाया जाता है उसी अनुपात में बाथ का तापमान घटाया जाता है। 

सैद्धान्तिक रूप में बाथ के अन्दर विद्युत प्रवाह और बाथ के तापमान में विपरीतात्मक (reverse) समायोजन रहता है । उच्च करेण्ट डैन्सिटी पर कम तापमान और निम्न करेण्ट डेन्सिटी पर अधिक गर्म बाथ का प्रयोग किया जाता है। जैसे-जैसे बाथ में प्रवाहित होने वाले करेण्ट की डैन्सिटी बढ़ाई जाती है उसी अनुपात में एनोडाइजिंग द्वारा वस्तु की सतह पर जमने वाली परत की मोटाई बढ़ती जाती है। 

उच्चतम क्षमता की करेण्ट डेन्सिटी प्रयोग कर आप अधिकतम संभव सीमा तक मोटी परत (Thick layer) प्राप्त कर सकते हैं और निम्न करेण्ट डेन्सिटी और अधिक गर्म बाथ का प्रयोग करके पतली से पतली सतह (thin layer) प्राप्त कर सकते हैं।

मेटल की सफाई (Metal cleaning)

एनोडाइजिंग बाथ और परिचालन स्थितियों के साथ-साथ एनोडाइजिंग की जाने वाली वस्तु की धातु तथा सतह की एकसारता व सफाई भी एनोडाइजिंग की परत को अत्यधिक प्रभावित करती है ।

एनोडाइजिंग के सीक्रेट (Secrets of Anodizing)

एनोडाइजिंग की सम्पूर्ण प्रक्रिया आज भी एक गुप्त रहस्य जैसी ही बनी हुई है। इलेक्ट्रोप्लेटिंग प्लाण्टस तथा मैटल पॉलिश के कारखानों की अपेक्षा आज भी एनोडाइजिंग करने वाले यूनिटों की संख्या देश में काफी कम है । इसका मुख्य कारण न तो काम का अभाव है और न ही एनोडाइजिंग प्लांट का अधिक महंगा होना बल्कि एक मात्र कारण है एनोडाइजिंग के बारे में जानकारियों का अभाव। 

वास्तविकता तो यह है कि जिन उपकरणों से आप इलेक्ट्रोप्लेटिंग का कार्य कर रहे हैं उन्हीं उपकरणों से आप एनोडाइजिंग का काम भी कर सकते हैं । इस कार्य में मुनाफा भी अधिक है और काम भी भरपूर मात्रा में सहज ही मिल जाता है। एनोडाइजिंग करने वाले प्लांटस अपेक्षाकृत कम संख्या में हैं, अतः अनुभवी और पूर्ण जानकार कारीगर बहुधा नहीं मिल पाते तथा प्रत्येक एनोडाइजर अपने व्यापारिक रहस्यों को छुपाकर रखना चाहता है, अतः आम आदमी चाहते हुए भी इस उद्योग में नहीं उतर पाता।

हम एनोडाइजिंग की सम्पूर्ण क्रिया-प्रक्रियाओं तथा बाथ तैयार करने के पूर्ण फार्मूलों और प्रयोग विधियों की विस्तृत जानकारी के साथ-साथ नीचे कुछ ऐसे सूत्र भी आपको बता रहे हैं जिनका प्रयोग कर आप सुगमतापूर्वक अच्छी एनोडाइजिंग करने में सफल रहेंगे।

1* एनोडाइजिंग में सबसे अधिक प्रयोग सल्फ्यूरिक एसिड या गंधक के तेजाब के बाथ का और शुद्ध सीसे (Lead) के एनोड्स का किया जाता है। सल्फ्यूरिक एसिड बाथ द्वारा पतली व चमकदार सतह की प्राप्ति होती है, अतः सजावटी वस्तुओं और सामान्य उपयोग की वस्तुओं को इसी बाथ में एनोडाइज्ड किया जाता है।

2*  ऐसी वस्तुओं पर, जिनकी सतह में गहरे छेद, कटाव, चूडियां कटी हुई या जोड़ के गहरे निशान व दरारें (Holes or Cuts) हों, सल्फ्यूरिक एसिड के स्थान पर क्रोमिक एसिड (Chromic Acid) से बने बाथ का प्रयोग अधिक सुरक्षित रहता है। 

दरारों और छेदों में भरा हुआ गंधक का तेजाब आसानो से साफ नहीं हो पाता और थोड़ी मात्रा में भी छेदों व दरारों में भरा यह सल्फ्यूरिक एसिड धीरे-धीरे वहां से वस्तु को काटकर खराब कर देता है। दूसरी ओर क्रोमिक एसिड को साफ करना भी आसान है और यह तीन प्रतिक्रिया भी नहीं करता।

3* औक्जेलिक एसिड के बाथ का प्रयोग करने पर वस्तुओं पर प्लेटिंग की काफी मोटी परत जमती है तथा इस घोल की रासायनिक प्रतिक्रिया (Solvent reaction) भी न्यूनतम होती है ।

4* एल्यूमिनियम मिश्र धातु की ऐसी वस्तुओं पर, जिनमें अति स्वल्प मात्रा में भी तांबा मिला हो, एनोडाइजिंग करते समय क्रोमिक एसिड घोल (Chromic Acid Bath) का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

5* सल्फ्यूरिक एसिड बाथ (Sulphuric acid bath) का प्रयोग प्रत्येक प्रकार की शुद्ध एल्यूमिनियम या इसकी मिश्र धातुओं (Aluminium Alloys) से बनी वस्तुओं पर किया जा सकता है ।

6* एनोडाइजिंग करने के लिए सीसे का मोटा अस्तर चढ़ी हुई स्टील की टंकी (lead coated steel tank) सर्वश्रेष्ठ रहती है। सीसे का अस्तर चढ़ी टंकी प्रयोग करने पर आप घुलनशील एनोडस का प्रयोग करने से बच जाते हैं क्योंकि टैंक की चारों दीवारों और तल में लगी सीसे की परत धीमे-धीमे बाथ में घुलती रहती है।

7* एनोडाइजिंग की सम्पूर्ण प्रक्रिया (process) हूबहू इलेक्ट्रोप्लेटिंग से मिलतीजुलती हुई ही होती है। अन्तर मात्र प्रयोग किए जाने वाले बाथ्स का होता है।

8* एनोडाइजिंग अधिकतर एल्यूमिनियम और इसकी मिश्र धातु से बनी वस्तुओं पर ही की जाती है। कभी-कभी तांबे (Copper), जिंक, मैग्नेशियम, चांदी अथवा लौहा (steel) और इनकी मिश्र धातुओं से बनी वस्तुओं पर भी एनोडाइजिंग की जाती है। 

इसके विपरीत एल्यूमिनियम पर इलेक्ट्रोप्लेटिंग बहुत ही कम की जाती है जबकि अन्य सभी धातुओं पर बहुधा इलेक्ट्रोप्लेटिंग ही की जाती है। 

एनोडाइजिंग की सम्पूर्ण प्रक्रिया का के बारे में हम आगे आने वाले आर्टिकल में जानेंगे 

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